अमिताभ की मां को इंदिरा ने ही बताया था अपने दिल का 'राज'

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि नेहरू और बच्चन के परिवार को जोडऩे वाली कड़ी प्रसिद्ध कवियित्री सरोजिनी नायडू से शुरू होती है। सरोजिनी इतनी प्रतिभाशाली कवियित्री थीं कि उन्होंने 14 वर्ष की उम्र में ही अंग्रेजी कविताएं लिखना शुरू कर दी थीं।
 

सरोजिनी नायडू के एक भाई 'विरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय' वीर सावरकर की एक गुप्त क्रांतिकारी संस्था के सदस्य थे और हिंसक कार्रवाई के आरोप में उन्हें फांसी की सजा हो गई थी। दूसरे भाई हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय और एक बहन प्रतिमा देवी को हम हिंदी फिल्मों में देख ही चुके हैं। हरिंद्रनाथ खुद एक अच्छे कवि थे। 1975 में आई हिंदी फिल्म 'जूली' का लोकप्रिय गीत ... 'माय हार्ट इज बीटिंग'... हरिंद्रनाथ ने ही लिखा था।

पंडित नेहरूजी, सरोजिनी के मुंहबोले भाई थे और सरोजनी उन्हें राखी बांधा करती थीं। जब सरोजिनी की पहली बार कवि बच्चन से मुलाकात हुई, तब भी इसक केंद्र बिंदु कविताएं ही रहीं। यह 1933 का वर्ष था... बच्चनजी उस समय 'मधुशाला काव्य संग्रह का सृजन कर रहे थे। पहली पत्नी श्यामा की मृत्यु को तीन वर्ष हो चुके थे और तेजी का कवि की जिंदगी में आगमन होने वाला था।

सरोजिनी और बच्चन की पहली मुलाकात सन् 1933 में हुई थी। इसके बाद इनकी दूसरी मुलाकात 9 वर्षों बाद 1942 में हुई... यह फरवरी का महीना था... सरोजिनी इस समय इलाहाबाद आई हुई थीं। उनके स्वागत में अमरनाथ झा ने डिनर का आयोजन किया था। गहरी मित्रता के नाते अमरनाथ ने कवि बच्चन व तेजी बच्चन को भी यहां आमंत्रित किया था।

सरोजिनी की कवि बच्चन से फिर मुलाकात हुई। इस समय कवि के साथ दूसरी पत्नी तेजी भी उपस्थित थीं। तेजी का सौंदर्य देखकर ही सरोजिनी, कवि बच्चन से कह उठीं...'काफी जख्म सहे हैं तुमने! लेकिन अब मलहम बहुत सुंदर मिल गया है'...।

सरोजिनी और बच्चन परिवार की यह शाम एक यादगार लम्हा बनने वाली थी...जाते समय सरोजिनी ने कवि और तेजी से कहां...आज आन सभी ने मेरा इतना अच्छा स्वागत किया है। इसलिए अब मैं भी आप सबका स्वागत करना चाहती हूं। कल शाम को मैंने चाय-पार्टी रखी है, जिसमें आप सभी को पधारना है।

आप सभी का मतलब...यहां पर इलाहाबाद के जाने-माने लेखक, कवि और प्राध्यापक जैसी कई बुद्धिजीवी हस्तियां मौजूद थीं। सरोजिनी ने सभी को आमंत्रित किया। लेकिन कवि और तेजी को उल्होंने अलग से ही आमंत्रित किया और कहा कि 'बच्चनजी आप दोनों को भी जरूर आना है'।

उपस्थित सभी लोगों ने आश्चर्य से पूछा...सरोजिनीजी! लेकिन हमें कल आना कहां है, क्योंकि आप तो किसी अतिथि गृह में ठहरी होंगी। सरोजिनी ने जवाब दिया...'मैं अपने भाई जवाहर के घर रुकी हुई हैं.. आनंदभवन में।'

दूसरे दिन सभी लोग 'आनंदभवन में पहुंच गए। यहां सरोजिनी के साथ पंडित जवाहर लाल नेहरू और कु. इंदिरा गांधी भी उपस्थित थीं। सरोजिनी ने कवि बच्चन का नेहरू और इंदिरा से परिचय कुछ इस अंदाज में करवाया...'ये हैं मशहूर कवि बच्चन और ये (तेजी) हैं इनकी कविता...।'

नेहरूजी ने कवि बच्चन का पूरी आत्मीयता के साथ स्वागत किया तो इधर इंदिराजी ने भी तेजी का हाथ पकड़ कर उन्हें अपने बगल में बिठा लिया। कुछ ही देर में इंदिराजी की तेजी से दोस्ती हो गई। मतलब कुछ पल पहले जो अजनबी थी वह चंद पलों में ही अब सहेलियां बन गईं। ठीक वैसा ही नेहरूजी और कवि के साथ हुआ, उन चंद पलों में इनके बीच ऐसी दोस्ती हुई कि इस रिश्ते को इन्होंने ताउम्र निभाया।

जब तेजी ने इंदिरा गांधी को सलाह दी...'जो दिल कहे वही करें'

तेजी और इंदिराजी के बीच काफी देर तक बातें होती रहीं। लेकिन तेजी महसूस कर रही थीं कि इंदिराजी के चेहरे पर तनाव और आंखों में कोई चिंता भी है। तेजी ने कारण पूछा...

इंदिरा पहली ही मुलाकात में नई-नई सहेली बनी तेजी पर इतना भरोसा कर गईं कि अपने दिल की वह बात बोल गईं जो शायद उन्होंने किसी से न कही होगी...'मैं किसी से प्रेम करती हूं, लेकिन वह पारसी है। घर में सब कहते हैं कि हमारा रुढि़वादी समाज धार्मिक रूप से अलग इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करेगा। मुझे समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं?'

तेजी ने पल भर में ही इसका जवाब दे दिया और कहा...'जो तुम्हारा दिल कहता है, वही करो।' एक महीने पहले ही मुझे भी इसी तरह की समस्या का सामना करना पड़ा था। क्योंकि मैं 'सिक्ख' थी और बच्चनजी 'कायस्थ'। इलाहाबाद में भी विरोध के स्वर उठे थे और मेरे मायके में भी। लेकिन फिर भी मैंने अपने दिल की सुनी और बच्चनजी से शादी कर ली और आज मैं बहुत खुश भी हूं।

यह बात थी फरवरी 1942 की। इंदिराजी ने तेजी की बात सुनकर निर्णय भी ले लिया और दूसरे ही महीने (मार्च, 1942) में फिरोज गांधी से शादी कर ली। इस विवाह में देश-विदेश से आए हुए चुनिंदा मेहमानों के साथ बच्चन दंपत्ति भी उपस्थित थे।

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